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Биография Пророка Мухаммада (салаЛлаху алейхи уа саллям)
قصة النبي محمد صلى الله عليه وسلم
До Ислама люди жили в невежестве и неверии. كانَ النَّاسُ قَبْلَ الإسلامِ يَعِيشُونَ في جَهْلٍ وكُفْرٍ. |
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Всевышний Аллах отправил Своего пророка (салаЛлаху алейхи уа саллям), чтобы он вывел людей из мрака к свету. أَرْسَلَ اللهُ تَعالَى نَبِيَّهُ مُحَمَّدًا، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، ليُخْرِجَ الناسَ مِنَ الظُّلُماتِ إلى النُّورِ. |
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Мухаммад (салаЛлаху алейхи уа саллям) родился в Мекке. . وُلِد محمدٌ، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، في مَكَّةَ. |
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Его отец Абдуллах бин Абдельмутталиб, а его мать Амина бинт Вахб. أَبُوهُ عبدُ اللهِ بنُ عبدِ المُطَّلِبِ، وأُمُّهُ آمِنَةُ بِنْتُ وَهْبٍ. |
4 |
Абдуллах умер до рождения Мухаммада. ماتَ عبدُ اللهِ قَبْلَ وِلادَتِهِ. |
5 |
А Амина умерла, когда ему было шесть лет. وماتَتْ آمِنَةُ عندما كان عُمْرُهُ سِتَّ سَنَواتٍ. |
6 |
Мухаммад (салаЛлаху алейхи уа саллям) жил со своим дедушкой Абдельмутталибом. عاش محمد مع جَدِّهِ عبدِ المطلبِ. |
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Когда умер Абдульмуталиб Мухаммад перешёл жить к своему дяде Абу Талибу. عندما مات عبدُ المطلبِ، ذَهَبَ محمد لِيَعِيشَ مع عَمِّهِ أبي طالبٍ. |
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Мухаммад пас овец, а позже занимался торговлей. عَمِلَ محمد راعِيًا للأغْنامِ، وبَعْدَ ذلِكَ عَمِلَ بالتِّجارَةِ. |
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Мекканцы любили его и очень уважали, потому что он был известен такими благими нравственными качествами как правдивость и честность. كان أَهْلُ مكة يُحِبُّونَهُ، ويَحْتَرِمونَهُ كثيرًا، لأنَّهُ كان مَشْهورًا بالأَخْلاقِ الطَّيِّبَةِ مِثْلِ الصِّدْقِ والأَمانَةِ. |
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Люди называли его Правдивый, Честный. كان الناس يُسَمُّونَهُ: (الصادِقَ الأَمِينَ). |
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Когда ему исполнилось двадцать пять лет, он женился на Хадидже бинт Хувайлид (да будет доволен ею Аллах), которой было сорок лет. وعندما بَلَغَ عُمْرُهُ خَمْسًا وعِشْرِينَ سَنَةً، تَزَوَّجَ السَّيِّدَةَ خَدِيجَةَ بِنْتَ خُوَيْلِدٍ، رَضِيَ اللهُ عَنْها، التي كان عمرُها أربعين سنة. |
12 |
Бывало Мухаммад (салаЛлаху алейхи уа саллям) ходил в место называемое «пещера Хира». كان محمدٌ، صلى الله عليه وسلم، يذهبُ إلى مكانٍ اسْمُهُ (غارُ حِراء). |
13 |
Он сидел там в одиночестве. كان يَجْلِسُ هُناكَ وَحْدَهُ. |
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Он размышлял о жизни и Вселенной и думал об Аллахе, который создал это всё. كان يُفَكِّرُ في الحَياةِ والكَوْنِ، ويَذْكُرُ اللهَ الذي خَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ. |
15 |
И однажды, когда он находился там пришёл к нему Джибриль (мир ему). وذاتَ يَوْمٍ، بَيْنَما كان هناك، جاءَهُ جِبْرِيلُ، عَلَيْهِ السَّلامُ. |
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И сказал ему: «О Мухаммад, читай». وقال له: "يا محمد، اِقْرَأ"ْ. |
17 |
Мухаммад сказал: «Я не умею читать». قال محمدٌ: "لا أَسْتَطِيعُ أَنْ أَقْرَأَ". |
18 |
عِنْدَئِذٍ قال جبريلُ لهُ: Тогда Джибриль сказал ему: ﴿ اِقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الذِي خَلَقَ. خَلَقَ الإِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍ. اقْرَأْ وَرَبُّكَ الأَكْرَمُ. الذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ. عَلَّمَ الإِنْسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ﴾. |
19 |
Мухаммад (салаЛлаху алейхи уа саллям) почувствовал сильнейший страх. شَعَرَ محمدٌ، صلى الله عليه وسلم، بالخَوْفِ الشَّدِيدِ. |
20 |
Он возвратился домой и рассказал Хадидже о случившемся с ним. رَجَعَ إلى بَيْتِهِ، وأَخْبَرَ خديجةَ بِما حَدَثَ مَعَهُ. |
21 |
После этого пророку было ниспослано ещё одно откровение приказывающее призывать людей в Ислам. بَعْدَ ذلكَ، نَزَلَ الوَحْيُ مَرَّةً أُخْرَى على النبي يَأْمُرُهُ بِأَنْ يَدْعُوَ الناسَ إلى الإسلامِ. |
22 |
В это время Пророку (салаЛлаху алейхи уа саллям) было сорок лет. وكان عُمْرُ النبي حِينَئِذٍ أَرْبَعِينَ سنةً. |
23 |
Пророк (салаЛлаху алейхи уа саллям) начал призывать людей к вере в Аллаха. بَدَأَ النبيُّ يَدْعُو الناسَ إلى الإيمانِ بِاللهِ. |
24 |
Он говорил им: «О люди, поистине я Посланник Аллаха вам, поклоняйтесь только Единому Аллаху и не придавайте Ему в сотоварищи ничего» قال لهم: "أَيُّها الناسُ، إنِّي رسولُ اللهِ إِلَيْكُمْ. اُعْبُدُوا اللهَ وَحْدَهُ، ولا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا". |
25 |
Первыми людьми, принявшими Ислам, были: Хадиджа, Абу Бакр и Али бин Абу Талиб. كانَ أَوَّلُ مَنْ أَسْلَمَ مِنَ الناسِ: السيدةَ خديجةَ، وأَبا بَكْرٍ الصِّدِّيقَ، وعليَّ بنَ أبي طالبٍ، رضي الله عنهم. |
26 |
Большинство Мекканцев отвергли Ислам. مُعْظَمُ أَهْلِ مكة رَفَضُوا الإسلامَ. |
27 |
Многобожники (мушрики) говорили о Пророке то, что он помешанный и что он колдун. قال المشركون عن النبي: "إِنَّهُ مَجْنُونٌ، إنه ساحِرٌ". |
28 |
Многобожники (мушрики) начали пытать мусульман и убивать их потому, что они уверовали. بدأ المشركون يُعَذِّبُونَ المسلمين، ويَقْتُلُونَهُمْ بِسَبَبِ إيمانِهِمْ. |
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После этого пророк (салаЛлаху алейхи уа саллям) приказал мусульманам переселиться в Медину. بعد ذلك، أَمَر النبيُّ، صلى الله عليه وسلم، المسلمين بالهِجْرَةِ إلى المدينةِ. |
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Потом он переселился сам и сопровождал его Абу Бакр (да будет доволен им Аллах). ثم هاجَرَ هو مع أبي بكر، رضي الله عنه. |
31 |
И когда они достигли Медины, люди встретили их и были счастливы. عندما وَصَلَ النبي إلى المدينة، اسْتَقْبَلَه الناسُ هُناكَ، وكانوا سُعَداءَ. |
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Первое, что сделал Пророк (салаЛлаху алейхи уа саллям) в Медине это строительство мечети. كان أَوَّلُ شَيْءٍ فَعَلَهُ النبيُّ في المدينةِ هو بِناءُ المسجدِ. |
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Не была мечеть местом для молитв и только, но наоборот это было место где мусульмане собирались и обсуждали все свои дела. لم يَكُنِ المسجدُ للصلاةِ فَقَط، وإنما كان مكانًا يَجْتَمِع المسلمون فيه لِمُناقَشَةِ كُلِّ أُمورِهِمْ. |
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Все мусульмане стали братьями/сёстрами. أَصْبَحَ المسلمون جَمِيعًا إِخْوَةً. |
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И в Медине образовалось Исламское государство. تَأَسَّسَتْ دَوْلَةُ الإسلامِ في المدينةِ. |
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И начались военные действия между мусульманами и многобожниками. بَدَأَتِ الحُرُوبُ تَحْدُثُ بين المسلمين والمشركين. |
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Во втором году после хиджры произошло сражение при Бадре и мусульмане одержали в нём победу. حَدَثَتْ غَزْوَةُ بَدْرٍ في السنةِ الثانية للهِجْرَةِ، وانْتَصَرَ فيها المسلمون. |
38 |
В третьем году после хиджры произошло сражение при Ухуде и победу в нём одержали многобожники. حدثت غزوةُ أُحُدٍ في السنة الثالثة للهجرة، وانتصر فيها المشركون. |
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На пятом же году хиджры произошло сражение у рва. حدثت غزوة الخَنْدَق (الأحْزاب) في السنة الخامسة للهجرة. |
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Для этого сражения собралось множество многобожников из разных мест Аравийского полуострова для того, чтобы воевать с мусульманами в Медине. اِجْتَمَعَ المُشْرِكونَ مِنْ كُلِّ مَكانٍ في الجَزِيرَةِ العَرَبِيَّةِ ليُحارِبُوا المسلمين في المدينة. |
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И евреи Медины предали мусульман и сотрудничали с этими многобожниками. يَهُودُ المدينةِ خانُوا المسلِمين، وتعاونوا مع هَؤُلاءِ المشركين. |
42 |
Однако Всевышний Аллах даровал победу Своим верующим рабам. لكنّ اللهَ تعالى نَصَرَ عِبادَهُ المُؤمنين. |
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Аллах Свят Он и Велик послал против многобожников сильнейший ветер и поэтому они покинули Медину. أََرْسَلَ الله تعالى رِيحًا شَدِيدَةً على المشركين، لذلك غادروا المدينةَ. |
44 |
На восьмом году хиджры произошло завоевание Мекки. في السنةِ الثَّامِنَةِ للهجرة، كان فَتْحُ مكة. |
45 |
Мусульмане пришли из Медины в Мекку и с ними был Посланник Аллаха(салаЛлаху алейхи уа саллям) . ذَهَبَ المسلمون مِنَ المدينةِ إلى مكة، ومعهم رسولُ الله، صلى الله عليه وسلم. |
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И мусульмане разрушили идолов, которые находились вокруг Каабы. حَطَّمَ المسلمون الأَصْنامَ التي كانتْ حَوْلَ الكعبةِ. |
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И вошли люди в религию Аллаха толпами. دَخَلَ الناسُ في دِينِ اللهِ أَفْوَاجًا. |
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Мекка стала частью Исламского государства. أَصْبَحَتْ مكةُ جُزْءًا مِنْ دَوْلَةِ الإسلامِ. |
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В одиннадцатом году хиджры пророк (салаЛлаху алейхи уа саллям) умер. في السنةِ الحادِية عشرة للهجرةِ، تُوُفِّيَ النَّبِيُّ، صلى الله عليه وسلم. |
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Ему было 63 года. كان عُمْرُهُ ثلاثا وستين سنةً. |
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صلى الله عليه، وعلى آلِه وأَصْحابه أَجْمَعين |
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قصة محمد صلى الله عليه وسلم
كانَ النَّاسُ قَبْلَ الإسلامِ يَعِيشُونَ في جَهْلٍ وكُفْرٍ. فأَرْسَلَ اللهُ تَعالَى نَبِيَّهُ مُحَمَّدًا، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، ليُخْرِجَ الناسَ مِنَ الظُّلُماتِ إلى النُّورِ.
وُلِد محمدٌ، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، في مَكَّةَ في عامِ الفِيلِ، وأَبُوهُ عبدُ اللهِ بنُ عبدِ المُطَّلِبِ، وأُمُّهُ آمِنَةُ بِنْتُ وَهْبٍ. وقد ماتَ عبدُ اللهِ قَبْلَ وِلادَتِهِ. أَمَّا آمِنَةُ، فقد ماتَتْ عندما كان عُمْرُهُ سِتَّ سَنَواتٍ.
عاشَ محمدٌ، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، مع جَدِّهِ عبدِ المطلبِ. وعندما مات عبدُ المطلبِ، ذَهَبَ لِيَعِيشَ مع عَمِّهِ أبي طالبٍ.
وعَمِلَ بِرَعْي الأَغْنامِ، ثُمَّ عمل بالتِّجارَةِ. وكان الناسُ في مكة يُحِبُّونَهُ، ويَحْتَرِمونَهُ كثيرًا، لأنَّهُ كان مَشْهورًا بالأَخْلاقِ الطَّيِّبَةِ مِثْلِ الصِّدْقِ والأَمانَةِ، فكانوا يُسَمُّونَهُ: (الصادِقَ الأَمِينَ).
وعندما بَلَغَ عُمْرُهُ خَمْسًا وعِشْرِينَ سَنَةً، تَزَوَّجَ السَّيِّدَةَ خَدِيجَةَ بِنْتَ خُوَيْلِدٍ، رَضِيَ اللهُ عَنْها، التي كان عمرُها أربعين سنة.
كان محمدٌ، صلى الله عليه وسلم، يذهبُ إلى مكانٍ في مكة اسْمُهُ (غارُ حِراء)، وكان يَجْلِسُ هُناكَ وَحْدَهُ، يُفَكِّرُ في الحَياةِ والكَوْنِ، ويَذْكُرُ اللهَ الذي خَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ.
وذاتَ يَوْمٍ، بَيْنَما كان هناك، جاءَهُ جِبْرِيلُ، عَلَيْهِ السَّلامُ، وقال له: يا محمد، اِقْرَأْ. فقال محمدٌ: لا أَسْتَطِيعُ أَنْ أَقْرَأَ. فقالَ لَهُ جبريلُ:﴿ اِقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الذِي خَلَقَ. خَلَقَ الإِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍ. اقْرَأْ وَرَبُّكَ الأَكْرَمُ. الذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ. عَلَّمَ الإِنْسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ﴾.
فشَعَرَ محمدٌ، صلى الله عليه وسلم، بالخَوْفِ الشَّدِيدِ، ورَجَعَ إلى بيتِهِ، وأَخْبَرَ خديجةَ بِما حَدَثَ مَعَهُ.
وبَعْدَ ذلكَ، نَزَلَ الوَحْيُ مَرَّةً أُخْرَى على الرسولِ، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، يَأْمُرُهُ بِأَنْ يَدْعُوَ الناسَ إلى الإسلامِ. وكان عُمْرُ الرسولِ حِينَئِذٍ أَرْبَعِينَ سنةً.
بَدَأَ الرسولُ يَدْعُو الناسَ إلى الإيمانِ بِاللهِ، وقالَ لَهُمْ: أَيُّها الناسُ، إنِّي رسولُ اللهِ إِلَيْكُمْ، فاعْبُدُوا اللهَ وَحْدَهُ، ولا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا.
وكانَ أَوَّلُ مَنْ أَسْلَمَ مِنَ الناسِ: السيدةَ خديجةَ، وأَبا بَكْرٍ الصِّدِّيقَ، وعليَّ بنَ أبي طالبٍ، رضي الله عنهم.
أَمَّا مُعْظَمُ أَهْلِ مكة، فقد رَفَضُوا الإسلامَ، وقالوا عن الرسول، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ: إِنَّهُ مَجْنُونٌ، إنه ساحِرٌ. كما بَدَأُوا يُعَذِّبُونَ المسلمين، ويَقْتُلُونَهُمْ بِسَبَبِ إيمانِهِمْ.
وبعد ذلكَ، أَمَرَ الرسولُ، صلى الله عليه وسلم، المسلمين بالهِجْرَةِ إلى المدينةِ، ثم هاجَرَ هو مع أبي بكر، رضي الله عنه.
وَصَلَ الرسولُ، صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وسَلَّمَ، إلى المدينةِ، فاسْتَقْبَلَهُ الناسُ هناك، وكانوا سُعَداءَ.
وكان أَوَّلُ شَيْءٍ فَعَلَهُ الرسولُ في المدينة هو بِناءُ المَسْجِدِ. ولم يَكُنِ المسجدُ للصلاةِ فَقَط، وإنَّما كان المسلمون يَجْتَمِعون فيه لِمُناقَشَةِ كُلِّ أُمورِهِمْ. وأَصْبَحَ المسلمون جَمِيعًا إِخْوَةً، وتَأَسَّسَتْ دَوْلَةُ الإسلامِ في المدينةِ.
وبَدَأَتِ الحُرُوبُ تَحْدُثُ بين المسلمين والمشركين، ومن ذلك:
* غَزْوَةُ بَدْرٍ: وحَدَثَتْ في السنةِ الثانية للهِجْرَةِ، وانْتَصَرَ فيها المسلمون.
* غزوة أُحُدٍ: وحدثت في السنة الثالثة للهجرة، وانتصر فيها المشركون.
* غزوة الأَحْزاب (الخَنْدَق): وحدثت في السنة الخامسة للهجرة، حَيْثُ اِجْتَمَعَ المُشْرِكونَ مِنْ كُلِّ مَكانٍ في الجَزِيرَةِ العَرَبِيَّةِ ليُحارِبُوا المسلمين في المدينة. وخانَ يَهُودُ المدينةِ المسلِمين، وتعاونوا مع المشركين. ولكنّ اللهَ تعالى نَصَرَ عِبادَهُ المُؤمنين، حيث أََرْسَلَ رِيحًا شَدِيدَةً على المشركين، فغَادَرُوا المدينةَ، ورَجَعُوا إلى بِلادِهِمْ.
وفي السنةِ الثَّامِنَةِ للهجرة، كان فَتْحُ مكة، حيث ذهب المسلمون من المدينة إلى مكة، ومعهم رسولُ اللهِ، صلى الله عليه وسلم، فحَطَّمُوا الأَصْنامَ التي حَوْلَ الكعبةِ. وبدأ الناسُ يَدْخُلون في دينِ اللهِ أَفْوَاجًا، وأصبحت مكةُ جُزْءًا مِنْ دَوْلَةِ الإسلامِ.
وفي السنةِ الحادِية عشرة للهجرةِ، تُوُفِّيَ الرسولُ، صلى الله عليه وسلم، وكان عمرُهُ ثلاثا وستين سنةً.
صَلَّى اللهُ عليه، وعلى آلِه وأَصْحابِهِ أَجْمَعينَ